सुनो बेटी,
कलम उठा लो
अपने क्रोध की स्याही भर लो
और उतार दो कागज पर
जैसे आग का खंड काव्य !
तुम बोलोगी तो ही
ये समाज सुनेगा
ऐसे तो ये समाज बहरा है
तुम्हे गुंगा बना देगा
तुम्हारा क्रोध देख
कांपेंगे जब अन्यायी
तब तुम जीत जाओगी
अपनी नजरों में काबील बनोगी
अपनी रग रग में
भर लो चिंगारी
वाकिफ सबको करवा दो
अपनी क्रोध की सीमा
लांघ नहीं पाएगा कोई
उस लक्ष्मण रेखा को
जिसे तुमने हर नारी के
आगे बिछाई है
अपने क्रोध की !
अपने कलम की !!
©मितवा श्रीवास्तव
हाँ तुम्हे जरूरत है
हाँ तुम्हे जरूरत है
चुप्पी तोड़ने की
खुदके लिए खुद लड़ने की
हाँ तुम्हे जरूरत है
बहती हवा सी रूख मोडने की
नदियों सी चंचल रहने की
भले ठोकर खाओ गिर पड़ो
बिना बैसाखी चलने की
तुम्हे जरूरत है
नादान हो मासुम हो तुम
लेकिन कमजोर नहीं
सीरत पहचानो उनकी जिन्हें बस सुरत से लगाव है
तुम आसमान छू लो तुम पानी चीर जाओ
खुद को साबित करने की
तुम्हें जरूरत है
तुम ताकत हो तुम गुरूर हो
तुम खुद मे संपूर्ण हो
ना जरूरत पड़े बैसाखी की
ना ही कंधे की
खुद को निखारने की
हाँ तुम्हे जरूरत है
खुद की खुद मे तलाश करो
खुदके ऐब मिटा कर
तुम खुद को तराश लो
यकिनन तुम काबील बनोगी
अपनी नजरों में कामील रहोगी
अब मंजिल पाने की
तुम्हें जरूरत है
तुम बेहद खूबसूरत हो
बेशक हर मुकाम हासिल कर सकती हो
किसीसे ये सुनने की तुम्हे जरूरत नहीं
तुम खुद मे एक मिसाल हो
तुम बेमिसाल हो
अब खुद को निहारने की
हाँ तुम्हे जरूरत है
सच का सामना करो
झूठ से बैर करो
नाकाम ही सही लेकिन कोशिशें हजार करो
अतित से सीख और वर्तमान में जी लो
भविष्य की चिंता छोड़ तुम
खुदसे प्यार करो
अब खुद को समेटने की
हाँ तुम्हे जरूरत है
-© मितवा
The Journey Begins
Thanks for joining me!
Good company in a journey makes the way seem shorter. — Izaak Walton
